ठहर जाओ ना - The Media Houze

सुनो, ठहर जाओ ना…

कि पैर मेरे‌ जवाब दे रहे हैं।

आखिर, क्यों नींद नहीं आ रही?

कमबख्त, हम कैसे ख्वाब दे रहे हैं?

वक्त भी खराब चल रहा है ,‌ आजकल!

जरा देखो, नदी भी सैलाब दे रहे हैं।

क्या जरूरी है, कि चलते रहे हम?

क्यों खुद पर ही, इतना दबा दे रहे हैं?

एक दूसरे के लफ्ज़, समझ नहीं पाते हम!

तो तोहफे में क्यों, अपनी किताब दे रहे हैं?

सुनो, ठहर जाओ ना थोड़ा… 

कि पैर मेरे‌ अब जवाब दे रहे हैं।

🌸वैष्णवी🌸