“””” तुम बिन “”””
हाल कुछ बेहाल सा है तुम बिन
फिर भी जिंदगी जीने का एहसास कमाल सा है तुम बिन,
रातों के अंधियारे में दस्तक देती है तुम्हारी बातें दिल तक,
इनका जवाब भी बेज़ुबाँ सा है तुम बिन
सोचता हूँ थाम लूँ तेरा हाथ अपने हाथों में
पर खुद को तन्हा पाकर
बदहवास सा हूँ तुम बिन
यूँ तो दूरियाँ है तुमसे
पर जिंदगी जीने का एहसास
कमाल सा है तुम बिन
फिर भी हाल कुछ बेहाल सा है तुम बिन
अक्षय झा ”’अनपढ़ दूरदर्शी”‘