दिल से रे..... - The Media Houze

एक सूरज निकला था, कुछ पारा पिघला था
एक आंधी आयी थी, जब दिल से आह निकली थी
दो पत्ते पतझड़ के पेड़ों से उतरे थे
पेड़ों की शाखों से उतरे थे
फिर उतने मौसम गुज़रे वो पत्ते दो बेचारे
फिर उगने की चाहत में वो सहराओं से गुज़रे
वो पत्ते दिल दिल दिल थे, वो दिल थे दिल दिल दिल थे
दिल है तो फिर दर्द होगा, दर्द है तो दिल भी होगा
मौसम गुज़रते रहते हैं

बंधन है रिश्तों में, काटों की तारें हैं
पत्थर के दरवाज़े दीवारें
बेलें फिर भी उगती हैं, और गुच्छे भी खिलते हैं
और चलते हैं अफ़साने, किरदार भी मिलते हैं
वो रिश्ते दिल दिल दिल थे, वो दिल थे दिल दिल दिल थे
गम दिल के पक चुलबुले हैं, पानी के ये बुलबुले हैं
बुझते हैं बाते रहते हैं