बचपन का जमाना - The Media Houze

मम्मी दो चोटियाँ बनाती थी..
मुझे नीन्द ना आने पर प्यार से सुलाती थी..
वो मेरे बिमार होने पर उसका रात भर जग जाना…
याद आता है मुझे वो बचपन का जमाना.

पापा के कहीं जाने पर पीछे लग जाती थी..
खाने मे जब मै नखरे दिखाती थी…
वो मम्मी का कौआ का कौर मैना का कौर बना के खिलाना..
याद आता है वो बच्पन का जमाना.

वो जब कोइ मुझपे धोउन्स दिखाये..
वो जब कोइ मुझपे चिल्लाये..
तब बाबा का मुझे सबसे बचाना..
हाँ याद आता है मुझे मेरे बच्पन का जामाना.

जब कभी मम्मी परेशान होकर मुझपे गुस्साती थी..
तब मै दौर कर दादी के पल्लु मे छुप जाती थी..
वो दादी का मुझे लाड लगाना…
याद आता है मुझे मेरे बच्पन का जमाना.

वो बड़े पापा की मज़ेदार कहानिया सुनाना..
वो उनका मुझे बहुत प्यार से बुलाना..
वो दिदि से बेवजह लड जाना..
याद आता है मुझे मेरे बच्पन का जमाना.

वो बारिश के पानी मे खुद को भिन्गाना…
वो गुड्डे गुडीयो कि शादी रचाना..
वो झूकि आम कि डाली पर बैठ…
राह्गीरो पर रंग गीराना…
हा अब याद आता है मुझे मेरे बच्पन का जमाना.

वो दोस्तों के साथ आइस पाइस खेलना..
वो सान्स रोक किसी कोने मे छुप जाना..
वो कबड्डी मे मेरा सब से हार जाना..
हा याद आता है मुझे मेरे बच्पन का जमाना.

वो सावन मे पापा का देवघर जाना..
मेरे लिये चुरिया और झूम्के लाना..
वो मेरा हस हस कर सबको दिखाना…
हाँ याद आता है वो बच्पन का जमाना.

वो दीदी की शादी के सपने सजाना
वो दादी से मिट्टी के चुल्हे बन्वाना..
वो मामा का दुलार वो मौसि का प्यार..
वो नाना नानी का बात बात पर लड जाना..
हाँ याद आता है वो बच्पन का जमाना..

फ़िर हर एक उल्झनो से दुर अपनी हि धुन मे रेहना..
वो बावलो सी कोयल कि कूक पे कु कु चिल्लाना..
मेरा रुठना और दीदी का मनाना…
वो भाई से बात बात पर लड जाना..
हाँ याद आता है मुझे मेरे बच्पन का जमाना