मसला कुदरत का है - The Media Houze

एक वायरस ने ना सिर्फ इंसान बल्कि पूरी दुनिया और मानव जाति को विनाश की दहलीज पर लाकर खड़ा कर दिया है, कम्प्यूटर के इस युग में क्या साइंस, क्या टेक्नोलॉजी, क्या सदियों का ज्ञान, सबने इसके आगे घुटने टेक दिए हैं। कोरोना ने पूरी दुनिया में हाहाकार मचा रखा था, लेकिन मसला ना कोरोना का है, ना लॉकडाउन का, मसला है कुदरत का, प्रकृति का। कुदरत यानि हम आप और ये सृष्टि, ये जमी, ये आसमां, ये पेड़-पौधे, ये पशु-पक्षी, ये विश्व, ये ब्रह्मांड, ऊपर वाले की बनाई हर चीज कुदरत का है. जिसके साथ हमने ऐसा खिलवाड़ किया है कि आज वो हम सबसे बेहद खफा है, प्रकृति अपना संतुलन खुद बना रही है।
ऊपरवाले ने हमें इंसान बनाया, इंसान के सीने में दिल और दिलों में मोहब्बत बसाया, लेकिन हमने इंसान को हिन्दू-मुस्लमान कर दिया, दिलों में मां की ममता जैसी मोहब्बत में नफरत भर दिया, उसने एक सरजमी बनाई, हमने उसे सरहदों मे बांट कर हिन्दुस्तान-पाकिस्तान कर दिया. उसने हमे खाने के लिए धरती से अनाज पैदा किया, पेड़-पौधों से फल और फूल दिया, हमने उसी जमीन से धातु-अधातु, अयस्क निकाला और फिर उससे चाकू, खंजर, गोला-बारुद, हथियार बना डाला, जिस पेड़-पौधे ने हमें सांस लेने के लिए हवा दी, उस हवा को भी जहरीला कर दिया, पेड़ों को ही अंधाधुंध काटकर उसपर कंक्रीट का शहर खड़ा कर दिया, घने जंगलों को रेगिस्तान बना दिया. जिस नदी ने हमारी प्यास बुझाने के लिए मिठा पानी दिया, हमने उस पानी में भी कैमिकल घोल दिया, दरिया के सारे जीव-जंतु के स्तित्व को खतरे में डाल दिया, खेतों में बेशुमार फसल की लालच में जमीन और फसलों पर इतना कीटनाशक डाला कि कीट पतंग खत्म होने लगे हैं. जुगून, तितलियां अब सिर्फ कहानियों के किरदार बन गये है, क्या शहर, क्या गांव, क्या कस्वा, क्या गली, क्या मोहल्ला, क्या इंसान, क्या इंसानियत की जात, हमने एक चीज को भी वैसा नहीं रहने दिया, जैसा जैसा कुदरत ने हमें दिया था. हमे जिस दुनिया में पैदा किया गया, हमने उसे ही नहीं बख्शा. इस पृथ्वी को तो प्यार से संजों ना सके, और चले हैं चांद और मंगल पर नई जिंदगी बसाने, अपनी दुनिया को तो बर्बाद कर ही दिया है और दूसरे ग्रहों पर भी अपना पागलपन, अपनी बादशाहत चलाना चाहते हैं, लेकिन हुकूमत सिर्फ और सिर्फ कुदरत की चलती है. उस कुदरत की जिसके हजारों करोड़ो बनाए गए प्राणियों में से हम महज इंसान हैं. उस इंसान के एक बूंद (वीर्य) के न जाने कौन से हिस्से का हम हिस्सा हैं, फिर भी हम में दुनिया भर का घमंड है, मैं फलाना मैं ढेकाना, लेकिन जिसने सबकुछ बनाया वो प्रकृति, वो कुदरत, वो ईश्वर, वो अल्लाह, वो भगवान कितना बड़ा है, हमें अपनी दुनिया (व्यक्तिगत घर परिवार, समाज, धर्म, राज्य और देश) की कितनी चिंता है तो उसे अपनी बनाई सृष्टि की कितनी फिक्र होगी, ये कोरोना के बहाने कुदरत का संदेश है, जिसे हमें समझना चाहिए, और जो गलती मानव जाति से हुई है उसे अब आगे ना दोहराएं तो बेहतर होगा, अगर इसके बाद भी हम नहीं सुधरे तो फिर हमारा भगवान भी मालिक नहीं।