' स्वानुभूति' कवि विपिन बी मिश्रा की नई रचना - The Media Houze

कभी जाओ,
मन की –
अँधेरी ,तंग , सकरी गलियों में,
रूबरू होंगे
स्व जीवन-पथ से,
पहले तो ,
पथ –
अस्थिर , धुँधला व अस्पष्ट ,
नजर आएगा ।
पुनः –
मिलने लगेंगे ,
जीवन के –
कई सपाट, समतल, प्यारे रास्ते।
आगे फिर ,
भागेगा मन ,
मिलेंगे कई चौराहे ,
जहाँ –
जीवन पथ के,
कुछ होंगे रास्ते –
पुराने, ऊबड़खाबड़ , कीचड़ भरे ,
वो विचलित कर देंगे ,
मन राही को ,,
कहेंगे पुरानी दास्ताने ,
हिल जाएंगे आप ,
सुन देख कर उन्हें।
पुनः –
आपके अंदर होगी संचारित,
एक नई ऊर्जा ,
जो बनाएगी आपको ,
पहले से ज्यादा –
सृजनात्मक,रचनात्मक,संवेदात्मक,
जिसे आप नहीं पा सकते,
बाह्य जगत से ।

©विपिन बी मिश्रा ।