हसरत - The Media Houze

हसरत

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वो आदत पुरानी,गई ना गई

वो चढ़ती जवानी,गईं ना गई

लोग पता पूछते रहे घर का

वो तबियत पुरानी गई ना गई।

 

इश्क़ मिजाजी कम हो तो कैसे

वो फुर्सत रवानी गई ना गई

वो मिले हर वक़्त उनको कंही

वो अवसर पुरानी,गई ना गई।

 

महज पा लेना जहां,कम ही तो है

वो हसरत पुरानी,गई ना गई

वो सजदे की आदत,सदियों की थी

वो शिरकत पुरानी,गई ना गई।

 

आज ओहदे का जनाजा क्या उठा

वो गफलत पूरानी, गई ना गई

एक मुट्ठी,मिट्टी कब्र को हो नसीब

वो हसरत पुरानी,गई ना गई

 

अक्षय झा”अनपढ़”