बंगाल में राजनीतिक हिंसा का मामला सदन से लेकर कोर्ट तक पहुंच चुका है। विधानसभा में हंगामा हुआ। हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि राज्य सरकार राजनीतिक हिंसा के मामलों में एफआईआर दर्ज करे। फिर भी शायद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को लगता है कि उनके शासन में सब कुछ ठीक-ठाक है। दीदी ने कहा था कि खेला होबे। जनता ने भरोसा किया। बंगाल के 10 करोड़ लोगों ने सोचा कि विकास की रेस में पिछड़े बंगाल में उन्नति और शांति का खेला होगा लेकिन चुनाव नतीजे आने के साथ ही बंगाल में राजनीतिक हिंसा का खेल शुरू हो गया।
ये खेल चलता रहा, खून बहता रहा लेकिन आरोप है कि ममता बनर्जी सरकार धृतराष्ट्र की तरह आंखों पर पट्टी बांधे बैठी रही। ममता लगातार कहती रहीं कि उनके राज में अमन कायम है। लेकिन अब ममता सरकार को कानून की दहलीज पर सच का सामना करना होगा। कलकत्ता हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि बंगाल में हाल में खत्म हुए चुनाव के बाद राजनीतिक हिंसा के सभी मामलों में एफआईआर दर्ज की जाए। अदालत ने ममता सरकार को ये निर्देश भी दिया कि हिंसा से प्रभावित परिवारों को मुफ्त राशन उपलब्ध करवाया जाए, चाहे उनके पास राशन कार्ड हो या नहीं। अगली सुनवाई में राज्य सरकार को केस दर्ज करने से जुड़े आदेश और राहत कार्य से संबंधित स्टेटस रिपोर्ट भी देनी होगी। हाईकोर्ट ने राज्य के चीफ सेक्रेटरी को आदेश दिया है कि वह चुनाव बाद हिंसा से जुड़े मामलों के सभी दस्तावेजों को सुरक्षित रखें. हाईकोर्ट का ये आदेश ममता बनर्जी सरकार के लिए झटका कहा जा सकता है। ऐसा क्यों है, ये समझने के लिए आपको ममता बनर्जी के कुछ बयान सुनने चाहिए।
यानी शपथ ग्रहण के बाद से लगातार ममता बनर्जी दो तरह के दावे करती रहीं। पहला दावा कि उनकी सरकार राजनीतिक हिंसा के खिलाफ कड़ा एक्शन ले रही है। और दूसरा दावा कि उनके शासन में वैसे तो अमन चैन है लेकिन बीजेपी को बंगाल की कुर्सी नहीं मिली तो वो उनकी सरकार को बदनाम करने के लिए प्रोपेगेंडा कर रही है। बंगाल में राजनीतिक हिंसा पर फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक बंगाल में चुनाव बाद हिंसा की 15000 घटनाएं हुईं। जिनमें 25 लोग मारे गए और करीब 7000 महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया गया। जबकि बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष का दावा है कि उनकी पार्टी के 37 कार्यकर्ताओं की हत्या की गई है।
बंगाल में चुनाव के बाद राजनीतिक हिंसा के मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। हाई कोर्ट ने हिंसा की घटनाओं की जांच करने वाली मानवाधिकार आयोग की टीम के कार्यकाल को भी 13 जुलाई तक बढ़ा दिया है। 13 जुलाई को ही हाईकोर्ट में इस मामले पर अगली सुनवाई होनी है. ममता बनर्जी चाहे जो दावे करें लेकिन बंगाल में कानून-व्यवस्था की स्थिति क्या है, इसका अंदाजइसी बात से लगाया जा सकता है कि वहां मानवाधिकार आयोग की टीम भी सुरक्षित नहीं है। हाई कोर्ट के आदेश के बाद मानवाधिकार आयोग की 7 सदस्यीय टीम का गठन किया गया था। NHRC की टीम ने पिछले दिनों जादवपुर का दौर किया था और हिंसा पीड़ितों से मुलाकात की थी। जादवपुर में इस टीम पर हमला कर दिया गया।
राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप अपनी जगह हैं लेकिन अगर किसी राज्य में हाईकोर्ट को सरकार को आदेश देना पड़े कि वो राजनीतिक हिंसा की एफआईआर दर्ज करे तो फिर सरकार की नीति और नीयत पर तो सवाल उठेंगे ही