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नशे की हालत में किया गया अपराध कब क्षमा योग्य होता है, ऐसे मसले पर क्या कहती है धारा 58 - The Media Houze

नशे की हालत में अगर किसी शख्स से संगीन अपराध हो जाता है तो क्या उस हालात में व्यक्ति पर मुकदमा दर्ज होगा और क्या उसके बाद उस अपराध के लिए उसे वैसी ही सजा मिलेगी जैसे हर किसी को मिलात है या फिर नशे की हालत में किया गया अपराध में माफी मिलेगी या फिर उस अपराध के लिए कोई और सजा है. ऐसे उलझे हुए मामले को सही ठंग से समझने के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 85 में परिभाषित किया गया है, जिसके मुताबिक अगर किसी शख्स को कोई जबर्दस्ती कोई नशीला सामान खिला पिला दे और नशे की हालत में उस शख्स से ऐसा अपराध हो जाए, जिस अपराध करने का उसका कोई उद्देश्य नहीं हो तो ऐसी स्थिति में नशायुक्त शख्स अपराध मुक्त हो सकता है. लेकिन इसके लिए सबूत के तौर पर आरोपी की दो बातें सबसे ज्यादा अहम मानी जाती है, सबसे पहला तो ये कि किसी ने उसे जबर्दस्ती नशा दिया हो, और दूसरा ये की नशा देने के बाद उस शख्स को नशे की हालत में ये होश या समझ ना हो कि वो जो भी अपराध कर रहा है वो सही है या गलत, इन दोनों आधार पर धारा 85 के तहत आरोपी को संरक्षण मिल सकता है. उदाहरण के तौर पर अगर किसी पड़ोस में रहने वाला कोई शख्स शराब के नशे में किसी लड़की का रेप करता है और उसकी हत्या कर देता है तो ऐसी स्थिति में उसे धारा 85 का संरक्षण नहीं मिलेगा, क्योंकि उसे किसी ने शराब नहीं पिलाई थी और वो ये काम खुद कर रहा था नोट - ये लेख दरभंगा के वरिष्ठ वकील रौनक हुसैन के बातचीत के आधार पर लिखी गई है

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