मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है. जब कहीं कुछ गलत होता है तो लोग कहते हैं कि मीडिया को बुलाओ. जब कहीं को भ्रष्ट अधिकारी अपने रुतबे का गलत इस्तेमाल करता है तो लोग कहते हैं कि मीडिया को बताऊं क्या. समाज में जब भी कोई शख्स किसी से नहीं डरता तो ऐसे लोग भी मीडिया के डर से गलत करने से खुलेआम बचते हैं. लेकिन धीरे धीरे मीडिया अपनी ये साख खोती जा रही है. भ्रष्टाचार की पोल खोलने वाली मीडिया पर अब खुद कई तरह के आरोप लगने लगे हैं. जिसे पुरी तरह से नाकारा भी नहीं जा सकता. क्योंकि टीवी पर खुलेआम क्या परोसा जा रहा है. जनता को क्या दिखाया जा रहा है ये किसी से छुपा नहीं है. कौन सी मीडिया संस्थान क्या कर रही है ये सबको दिख रहा है. और हैरानी की बात ये है कि इन मीडिया संस्थानों को भी अब फर्क नहीं पड़ता कि वो जो कुछ भी दिखा रहे हैं. उससे पूरे देश में क्या संदेश जा रहा है. टीआरपी ही होड़ में और चंद नेताओं को खुश करने में मीडिया के बड़े बड़े पत्रकार तलवे चाटते दिखाई देने लगे हैं. कई बार तो टीवी पर ऐसा लगता है कि ये पत्रकार कम हैं और किसी पार्टी विशेष के प्रवक्ता ज्यादा। कुछ इसी तरह की भावनाओं को महसूस करने के बाद बिहार की सत्ता में लम्बे समय से काबिज रहने वाली मुख्यमंत्री नीतिश कुमार की पार्टी जेडीयू के बड़े नेताओं में शामिल केसी त्यागी ने मीडिया की भूमिका पर बड़ा सवाल खड़ा किया है और कहा है कि मीडिया अपनी भूमिका से भटक गई है. केसी त्यागी ने अपने ब्यान में साफ साफ कहा है कि मीडिया संप्रदायिक होने लगी है. जिसे लेकर हमें आवाज उठानी चाहिए।