मुस्लमानों के लिए 5 फर्जों में से नमाज एक ऐसा फर्ज है जो किसी भी हालत में माफ नहीं है. नमाज की इस्लाम में कितनी अहमियत है इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं. लेकिन नमाज धार्मिक रुप से जितना अहम है उतना ही विज्ञानिक तौर पर महत्वपूर्ण भी है. जब आप नमाज के पीछे का साइंस समझेंगे तो इसका अलग ही रुप सामने आता है. दुनिया के कई बड़े विज्ञानिकों ने माना है कि ये सबसे बहतर एक्सरसाइज है. यहां तक की फिजियोथेरेपिस्ट भी मानते हैं कि नमाज से ना सिर्फ पूरे शरीर की वर्जिस होती है जिससे शरीर स्वस्थ और सुडौल होतो है बल्कि ये एकाग्रता भी बढ़ाती है. तो आइए जानते हैं कि नमाज विज्ञानिक तौर पर किस तरह से महत्वपूर्ण है नमाज अदा करने की पूरी प्रक्रिया है, जिसमें वजू से लेकर सलाम फेरने और दुआ मांगने तक ये पूरी होती है. यहां हर स्टेप के अपने वैज्ञानिक फायदे हैं, तो सबसे पहले बात वजू की वजू करने से शरीर को क्या क्या फायदा मिलता है वजू नमाज पढ़ने से पहले शरीर को पाक साफ करने का तरीका है. इसके लिए साफ पानी से तीन बार हाथ, मुंह, नाक और पूरे चेहरे को धोया जाता है जो की हमारे शरीर की मुख्य इंद्रियां है. फिर इसके बाद तीन पानी से कोहनी तक हाथ धोना इसके बाद कान के पीछे वाले हिस्से को दवाब के साथ साफ करना और फिर टखने से नीचे पैर धोया जाता है. कहते हैं मानव शरीर में 7 सौ से अधिक सक्रिय जगह है जिसमें से वजू करने के बाद 61 जगहों की सफाई हो जाती है. वजू करने के दौरान जैविक सक्रिय स्थानों का मसाज हो जाता है जिससे पेट आंत पित्ताशय और नाड़ी पर सकारात्मक असर पड़ता है. कान के वजू से खून का उच्य दबाव कम होता है नियत के फायदे वजू करने के बाद अब नमाज के लिए नियत बांधनी होती है जिसे कयाम कहते हैं, इसके लिए नमाज़ी सीधे पांव पर खड़े होते है. जिसे कयाम कहते हैं. इसमें दोनो पांव को थोड़ा सा गैप रख के खड़ा होना होता हैं. फिर दोनों हाथों को ऊपर ले जाकर अपने छाती से कुछ नीचे नाभी वाले हिस्से पर रखता है और बाये हाथों की अंगलुयों पर दाये हाथों को रखता है. जिससे दोनों हाथ हृदय चक्र बना लेता है जिससे दिल और फेफड़ों को काफी फायदा पहुंचता है. इस तरह से करने पर दोनों पैर और पीठ को बहुत आराम मिलता है. इतना ही नहीं इस हालत में खड़े होने पर हमारी भावनाएं और दिमागी इंद्रिया भी संतुलित रहती है नियत के बाद रुकू और उसके फायदे नियत बांध कर खड़े होने के बाद नमाजी कुरान की आयतें उच्चारण के साथ बढ़ते हैं फिर जब आयतें पूरी हो जाती है तो फिर रुकू में जाते हैं, रुकू में जाने के लिए कमर के पास नीचे झुककर हाथों की अंगुलियों को घुटनों पर रखते है. जिससे धड़ के नीचले हिस्से में नसों में खून तेजी से दौरड़ा है. रुकू में जाने से पीठ के निचले हिस्से, टांगें, जांघ और घुटनों की मांसपेशियों में तनाव होता है जो इन सभी अंगों को मजबूत करता है. रुके के बाद सजदा किया जाता है सजदा के वैज्ञानिक फायदे रुके के बाद नमाज में सजदा किया जाता है. इसमें दोनों हाथों को घुटनों पर रखते हुए उन्हें झुकाते हुए नीचे फर्श पर जाते हैं और फिर जमीन पर अपना सर रखते हैं जिसमे नाक का हिस्सा भी जमीन को छूता है और दोनों हाथो को भी चेहरे के पास जमीन पर रखते हैं...इससे बदन को जमीन के सहारे मैगनेटिक फील्ड मिलती है...जो शरीर में उर्जा बनाए रखता है. सजदा करने के बाद दोनों पैर को पीछे की तरफ मोड़ कर जांघ पर बैठते हैं फिर चेहरे को पहले दाई तरफ और फिर बाईं तरफ घुमाते हैं और आखिर में जब नमाज पूरी हो जाती है तब दोनों हाथों को आगे उठाकर दुआ मांगते हैं. नियत के बाद रूकू होता है. इसमें सीधे खड़े होने के बाद आधी शरीर के नीचे झुकाते हैं, खड़े होकर नीचे झुकते हुए दोनों हाथों को घुटने पर कुछ देर तक रखते हैं. इससे पूरे शरीर में खून का प्रवाह तेजी से होता है और कमर झुकने से इसका अच्छी तरह से एक्सरसाइज हो जाता है, जिससे बुढ़ापे में भी कमर की समस्या कम होती है. ये तो हुए नमाज के पीछे की साइंस आइए अब इसे भारतीय संस्कृति योग के सहारे समझते हैं. नमाज में जितनी भी प्रक्रिया होती है वो पूरी की पूरी तरह से योग है. तो चलिए योग की भाषा में नमाज को समझते हैं नमाज की नियत में सीधे पांव खड़े होने के बाद शरीर को कमर के सहारे नीचे झुकाते हैं, जिसे योग की भाषा में अर्ध उत्तनासन कहते हैं. क्यों दोनों की हालत में शरीर का नीचे वाला हिस्सा एक जगह खड़ा होता है और ऊपरी वाला हिस्सा झुका कर नीचे लाया जाता है. कमर के सहारे नीचे झुकने के बाद दोनों हाथों को घुटने पर ले जाते हैं और उसी अवस्था में कुछ देर रहते हैं. इससे कमर और जांघों में खिंचाव होता है. जिससे खून बहुत तेजी से बदन में दौड़ने लगता है. इससे पेट पर भी बल पड़ता है जिससे पेट और उसके आसपास के हिस्सों की चर्बी कम होती है रुकू के बाद सजदा और उसके फायदे रुकू में जाने के बाद नमाज पूरी करने के लिए एक बार फिर से सीधे खड़े होते है और तूरंत दोनों हाथों को घुटने पर रखते हए पूरे शरीर को नीचे झुकाते हुए नीचे जमीन पर ले जाकर सर सटाते हैं और फिर दोनों हाथों को अपने मुंहे के पास जमीन पर रखते हैं. इस क्रिया में जमीन के सहारे शरीर को मैगनेटिक फील्ड मिलता है. जो शरीर को उर्जा से भर देता है. फिर इसके बाद दोनों पैरों को पीछे मोड कर जांघ पर बैठा जाता है, इस क्रिया में जांघ और दोनों पैरों के पंजे पर काफी दवाब पड़ता है, जो जांघ और पैरे को काफी मजबूत करता है. फिर इसके बाद गर्दन के सहारे चेहरे को पहले दाई फिर बाई तरफ घुमाते हैं. इससे गर्दन के साथ साथ आंखों का भी एक्सरसाइज होता है. जिसे नमाज में सलाम फेरना कहते हैं. इसके साथ ही नमाज पूरी हो जाती है, लेकिन इसके बाद फिर दोनों हाथों को आसमान की तरफ उठा कर दुआ मांगा जाता है. जो खुद में हाथों की वर्जिस है. कहते हैं कि जो मुस्लमान सुबह से लेकर रात तक पांचों वक्त का नमाज पढ़ता है. तो वो एक दिन में 3 मील प्रतिघंटे जॉगिग करने के बराबर है. क्योंकि इससे एक हफ्ते में 2000 कैलोरी बर्न होती है. एक रिसर्ज में बताया गया है कि मौत की दर नमाजियों में अन्य के मुकाबले एक चौथाई है. क्योंकि उम्र के साथ शरीर का मेटाबॉलिज्म कम होता है. हड्डियां कमजोर होने लगती है. लेकिन नमाज पढ़ने से जोड़ों में चिकनाई और उनका लचीलापन बढ़ता है