बिहार की राजनीति हमेशा से जात की राजनीतिक समीकरण के विसात पर ही बीछी है. बिहार में किसी भी चुनाव को जातिगत रुप दिए बिना चुनाव जीतना मुमकिन नहीं. राज्य की तमाम पार्टियों के द्वारा कोई भी फैसला जाति को ध्यान में रख कर ही किया जाता है. क्योंकि पार्टी प्रमुख को यह बात पता होती है कि जातिगत राजनीति ही बिहार जैसे राज्य में जीत दिला सकती है. यूं तो बिहार में राजद और जदयू खुद को क्षेत्रिय दलों के रुप में स्थापित कर लिया है, और दोनों के अपने अपने जातिय समीकरण है. लेकिन इस जातिय समीकरण में पप्पू यादव ने ऐसी सेंध मारी है कि हर जाती के लोग उसके साथ आने लगे हैं. जिससे दूसरी पार्टी के लोगों को उनका वोट बैंक जाने का डर सता रहा है. पप्पू यादव ने राजद से निकल कर अपनी एक अलग जनाधिकार पार्टी बनाकर जातिगत राजनीति पर चोट किया है. भले ही पप्पू यादव ‘यादव’ जाति से आते हो लेकिन इनकी लोकप्रियता बिहार में तमाम जातियों और धर्मों में बढ़ी है. इनकी लोकप्रियता बढ़ने के कई सारे कारण है. वे खुद को स्वतंत्र रुप में लेकर चल रहे हैं.
पप्पू यादव भले ही सदन में विपक्ष की भुमिका में नहीं है लेकिन खुद को राज्य में एक विपक्षी दल के रुप में स्थापित कर लिए हैं. वे एकमात्र ऐसे नेता के रुप में उभरे हैं जो सभी आपदाओं में लोगों के बीच होते हैं. मुजफ्फरपुर चमकी बुखार मामला हो या बिहार में बाढ़ से बिगड़ते हालात का मामला वे सदा जनता के बीच पाये जाते हैं. कोरोना वायरस जैसे विकट परिस्थिति में भी वे दिन रात लोगों की सेवा में लगे रहते हैं. और इन्हीं तमाम कारणों से पप्पू यादव की लोकप्रियता सभी जाति के लोगों में बढ़ी है. समय समय पर सरकार की नाकामियों को आम लोगों के सामने लाने के कारण इन्होंने सभी धर्मों और सभी जातियों के बीच अपना स्थान बनाया है.
पिछले साल बिहार विधानसभा चुनाव में भले ही उन्हें सफलता नहीं मिली हो लेकिन उन्हें लगभग सभी जातियों ने वोट किया था. पप्पू यादव की पार्टी को उच्च वर्ग के लोगों ने भी वोट किया था और अन्य वर्ग के लोगों ने भी. इस वजह से एक हद तक पप्पू यादव ने बिहार में जातिगत समीकरण को तोड़ना शुरु कर दिया है. जिससे कई राजनीतिक पार्टी को डर सताने लगा है कि बिहार में जाती की राजनीति अब कमजोर ना पड़ जाए.
समझने वाली बात यह है कि आखिरकार पप्पू यादव की पार्टी को सभी जातियों का वोट कैसे मिला. जाप प्रमुख ने जातिगत आधारित राजनीति में कैसे सेंधमारी कर ली ? सबसे जो मुख्य कारण है वह है सरकार की नाकामी को जनता के सामने लाकर सरकार पर लगातार हमला करते रहना. और यही चीज बिहार के लोगें को रास आ गई और जातिगत समीकरण में सेधमारी हुई. अगर हम पिछले साल हुए बिहार विधानसभा चुनाव पर नजर डाले तो समझ जाएंगे की जनअधिकार पार्टी के तरफ से उच्च वर्ग के जातियों का खासा ध्यान रखा गया था. जिस वजह से पप्पू यादव के ऊपर उच्च वर्ग के जातियों ने विश्वास जताया था. यही कारण है कि बिहार में पप्पु यादव ने जातिगत समीकरण की राजनीति को तोड़ने का काम किया है.