किसने सोचा था? समाजसेवी अन्ना हजारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जंतर-मंतर पर तिरंगा लहराकर जन लोकपाल क़ानून की मांग करने वाले अरविंद केजरीवाल कुछ ही सालों में दिल्ली की राजनीति के शीर्ष पर होंगे। लेकिन ऐसा हुआ, और वो भी तब जब पहली बार राजनीति में कदम रखने वाले अरविंद केजरीवाल ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी की कद्दावर नेता और 15 साल से दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित को हरा दिया, और कांग्रेस पार्टी 43 से आठ सीटों पर सिमट कर रह गई। वही दूसरी तरफ केजरीवाल का टक्कर सीधे-सीधे केंद्र की सत्ताधारी पार्टी बीजेपी से थी जो उसके मुक़ाबले कहीं बड़ी पार्टी है और वह भी तब जब बीजेपी अपने उफान पर थी | इन दो बड़ी पार्टियों के बीच में देश की राजधानी में किसी नई पार्टी का इस तरह उभरना ये सोचने पर मजबूर करता है की, आखिर ये हुआ कैसे? और ऐसे में केजरीवाल के नेतृत्व और उनकी रणनीति को समझना और उस पर बात करना लाज़िमी है।
आंदोलनकारी सीएम अरविंद केजरीवाल
केजरीवाल की पार्टी रैलीयो और धरना प्रदर्शनों से उभरी पार्टी है जो साफ़-सुथरी राजनीति के वादे के साथ 2012 में अस्तित्व में आई | 2013 में पहली बार जब आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई और केजरीवाल सीएम बने उस वक्त भी केजरीवाल आंदोलनकारी की ही तरह काम कर रहे थे। सीएम होते हुए उन्होंने दिल्ली पुलिस पर काम न करने का आरोप लगाया और इसके खिलाफ रेल भवन के बाहर धरने पर बैठ गए। इसी आंदोलनकारी अवतार में उन्होंने यह कहकर 49 दिन में ही सीएम पद से इस्तीफा दे दिया कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों सरकार को जनहित के काम नहीं करने दे रही हैं। इसलिए फिर से चुनाव बाद पूर्ण जनादेश के साथ लौटेंगे| इसके बाद वो हुआ, जो किसी ने नहीं सोचा था| जिस पार्टी की उम्र महज़ क़रीब दो साल थी, उसने 2015 में दिल्ली की राजनीति में इतिहास रचते हुए 70 में से 67 सीटें जीत ली|
एंग्री यंग मैन की तरह राजनीति में एंट्री करने वाले केजरीवाल कैसे बने दिल्ली का बेटा?
केजरीवाल को पार्टी स्तर पर काफी दिक्कतें भी झेलनी पड़ी। योगेंद्र यादव से लेकर प्रशांत भूषण तक पार्टी के कई बड़े नेताओं ने केजरीवाल पर तानाशाह होने का आरोप लगाया और पार्टी से अलग हो गए। पंजाब विधानसभा चुनाव के वक्त भी पार्टी में बड़ी उथल पुथल हुई। उस वक्त भी केजरीवाल पर आरोप लगे और कुछ नेताओं ने पार्टी से भी किनारा किया। कुमार विश्वास और टीवी एंकर आशुतोष भी बाद में मोहभंग के चलते अपनी राह अलग कर ली। हालांकि केजरीवाल के साथ उनके दोस्त और दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, वर्तमान राज्यसभा सांसद संजय सिंह जैसे कुछ लोग ही बने रहे। विरोधियों ने भी केजरीवाल की इमेज एक दंभी नेता की तरह बनाने की कोशिश की। फिर एक वक्त आया जब केजरीवाल ने सोशल मीडिया के माधयम से पीएम नरेंद्र मोदी पर लगातार हमला बोलना शुरू कर दिया । हर रोज वह मोदी के खिलाफ ट्वीट और कई पर्सनल कमेंट भी किए। वह कहते रहे कि मोदी सरकार दिल्ली में उन्हें काम नहीं करने दे रही है। केजरीवाल ने फाइल अटकाकर विकास काम रोकने का आरोप लगाते हुए दिल्ली के उपराज्यपाल के ऑफिस पर ही धरना भी दिया। केजरीवाल की पूरी कैबिनेट उनके साथ थी। एक तरफ जहां केजरीवाल की इस धरना पॉलिटिक्स से लोग उकताने की बात करने लगे थे, और इसकी वजह से अपर क्लास और मिडल क्लास वोटर आम आदमी पार्टी से छिटकता दिखने लगा।जबकि वहीं पीएम मोदी के खिलाफ भी क्षेत्रीय दल लामबंद होने लगे और केजरीवाल को उन सबका सपोर्ट मिला। हालांकि फिर केजरीवाल ने दिल्ली पर फोकस करना शुरू किया और केंद्र पर, खासकर पीएम मोदी पर अटैक करने की बजाय सारा फोकस काम पर किया। केजरीवाल ने सारा फोकस विकास के एजेंडे पर दिखाते हुए भी बीजेपी के हिंदू दांव को फेल करने का इंतजाम भी किया। आंदोलनकारी केजरीवाल अब सधे हुए राजनेता बन गए।
अरविंद केजरीवाल की अलग तरह की राजनीति
जिस ज़मीन पर वो राजनीति करते हैं यानी दिल्ली वो भी दूसरे राज्यों जैसी नहीं है, ये भी एक कारण है कि वो अपनी अलग तरह की राजनीति कर पाते हैं| आम आदमी पार्टी की केंद्रीय तत्व है शहरी सुशासन जिस पर वह सोच विचार करती है और अपने अधिकारों के अनुसार रास्ते निकालती है, उनके पास न पुलिस है, न ज़मीन है तो ज़ाहिर है इस क्षेत्र में वो अधिक काम नहीं कर सकती| जिन सेक्टर में उनके पास अधिक नियंत्रण है, जैसे शिक्षा, परिवहन, स्वास्थ्य- वो उसमें काम करती है और उसका प्रदर्शन बेहतर रहा है. आम आदमी पार्टी ने अपने पहले बजट में शिक्षा, परिवहन, स्वास्थ्य जैसे सोशल सेक्टर में जबर्दस्त पैसा आवंटित किया था| केंद्र सरकार समेत देश की किसी भी राज्य की सरकार ने ऐसा नहीं किया| उलट आम तौर पर अब प्रवृत्ति ऐसी बन गई है कि शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे सेक्टर निजी हाथों में दे दिए जाये| इसके साथ जो एक चीज़ हुई वो ये कि इस पार्टी ने अर्बन गवर्नेंस और वेलफेयर सरकार का एक नया मॉडल राष्ट्रीय मंच पर पेश किया है| ये बीजेपी और कांग्रेस के वेलफेयर सरकार के मॉडल से अलग है|
अरविंद केजरीवाल की भ्रष्टाचार पर चुप्पी
आंदोलन से निकली ये पार्टी व्यवस्था परिवर्तन और नई क़िस्म की राजनीति करने के वादे के साथ आई तो थी. देश भर में लोगों को भी उम्मीद बंधी थी कि भारतीय राजनीति में एक मौलिक बदलाव आएगा. लेकिन समय के साथ साथ अरविंद केजरीवाल भी वही कर रहे हैं, जो बाक़ी राजनीतिक दल करते हैं. जैसे की अब ये पार्टी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बात नहीं करती है.
शुरूआती दौर में भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर आम आदमी पार्टी आक्रामक थी. एक वक्त था जब केजरीवाल लिस्ट जारी करते थे कि देश में कौन-कौन से भ्रष्ट नेता हैं. केजरीवाल कहते थे कि अपने वीडियो कैमरे का इस्तेमाल कीजिए और जहां भी कोई भ्रष्टाचार करता हुआ मिले, कोई सरकारी कर्मचारी पैसा मांगता हुआ मिले तो उसकी वीडियो बनाइए और हमें भेजिए.पिछले पाँच साल में उन्होंने भ्रष्टाचार पर कोई बात नहीं की. भ्रष्टाचार अब उनके लिए मुद्दा नहीं रह गया है.
राजनीतिक दांव खेलने के मामले में दो बातों बेहद ज़रूरी हैं| अगर आपने काम नहीं किया है और सिर्फ़ प्रचार किया है तो उसे सफलता नहीं मिलेगी| और अगर आपने सिर्फ़ काम किया है लेकिन उसके बारे मे प्रचार नहीं किया है तो भी राजनीतिक दांव बेकार हो जाएगा|राजनीति में सिर्फ़ एक काम कर के सफल नहीं हुआ जा सकता है| राजनीति में अच्छा शासन करने के अलावा, अपनी रणनीति बनाना, विपक्ष की रणनीति समझना, मीडिया को साधना और सामाजिक समीकरण भी बनाए जाते हैं| चुनावी रणनीतियां बहुआयामी होती हैं,और दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की राजनीति में ये आयाम भलीभांति देखे जा सकते है