रमजान में रोजा रखने के पीछे का साइंस क्या है, रोजे में पानी तक पीने की इजाज्त क्यों नहीं - The Media Houze

इस्लाम में मुसलमानों पर पांच फर्जों में से एक रोजा भी है. इस्लाम में गुनाह और सावाब से इतर रमजान के रोजों की अलग ही अहमियत है। रोजा रखने से सिर्फ इबादत ही नहीं होती, बल्कि इससे सेहत को भी कई फायदे पहुंचते हैं। इससे जिस्मानी कई परेशानियां खुद ब खुद खत्म हो जाती है. तो चलिए जानते हैं कि आखिर रोजा रखने से क्या कुछ होता है. इससे क्या और कैसे फायदा पहुंचता है.

इंसान अपने दिन की शुरूआत से लेकर देर रात तक काफी कुछ खाता है. जिस्म को काम करने के लिए ताकत चाहिए, जिसके लिए हमें खाने के तौर पर ज्यादा कैलरी चाहिए, जो हमें अधिक ऊर्जा देता है लेकिन ज्यादा कैलरी खाने से ये हमारे शरीर के बाकी कामों को करने से रोक सकता है, जैसे कि जिस्म के अंदर खुद की मरम्मत करना. हमारे बदन के अंदर खुदा ने इतनी सफा दी है कि वो खुद अपने शरीर की मरम्मत करता है. जिसे अंग्रेजी में हीलिंग (HEALING), हिन्दी में प्राण शक्ति कहते हैं. जिसमें केंसर जैसी बीमारी को ठीक करने की कुवत है. बड़ी से बड़ी टूटी हुई हड्डी इसी हीलिंग, प्राण शक्ति से जुड़ती है. कोई भी डॉक्टर टूटी हुई हड्डी के अंदर से जाकर उसे नहीं जोड़ता, बल्कि वो सिर्फ उसे बाहरी हिस्से पर प्लास्टर चढ़ा कर उसे एक स्पोर्ट देता है. लेकिन टूटी हुई हड्डी अपने आप ही अंदर से जुड़ती है, जिस्म के अंदर के घाव भी ठीक इसी तरीके से भरते हैं.

अब जानते हैं कि आखिर ये हीलिंग या प्राण शक्ति कैसे और कब काम करती है, और रोजा रखने के दौरान ये कैसे ज्यादा फायदेबंद होता है.

हमारा जिस्म जब अंदरूनी रुप से कोई काम नहीं कर रहा होता है तो वो अंदर मरम्मत का काम करता है. यानि हीलिंग शुरु करता है. इसलिए जब हम सोने के बाद उठते हैं तो हम ज्यादा फ्रेस और ताकत महसूस करते हैं. बड़ी से बड़ी बीमार से परेशान इंसान भी सोने के बाद खुद को ज्यादा अच्छा महसूस करता हैं. उसके पीछे की वजह यही हीलिंग पॉवर काम करती है.

जब हम कुछ खाते हैं तो उसे पचाने के लिए हमारा डाइजेस्टिव सिस्टम (Digestive System ), पाचन तंत्र काम करना शुरु कर देता है, लेकिन अलग अलग तरह के खाने को पचाने के लिए पाचन तंत्र को अलग अलग काम करना पड़ता है, मसलन फल को तीन घंटा, सब्जी को 6 घंटा और अनाज को पचाने में 18 घंटा लगता है. लेकिन आम तौर पर इंसान हमेशा कुछ ना कुछ खाते ही रहता है. सुबह उठते ही मुंह में कुछ डाल लेना हमारी फितरत है फिर सुबह का हल्का या भारी नाश्ता फिर दिन का खाना फिर शाम का स्नैक और फिर रात का खाना. इस तरह से हम अपने पाचन तंत्र को ओवर टाइम पर लगाकर काम कराते रहते हैं. सुबह का नाश्ता पचा नहीं कि दिन का खाना पेट में डाल दिया, अभी उसे पचाने के लिए 18 घंटे चाहिए थे कि फिर शाम में कुछ डाल दिया, उसे पेट पचा ही रहा था कि रात का खाना पेट में डाल कर सो गए. जिसे पचाने में फिर से 18 घंटे चाहिए और इस तरह से रात भर पाचन तंत्र खाना पचाने का काम करता रहता है. सोते वक्त हमारा शरीर तो आराम करता है लेकिन पाचन तंत्र का करता रहता है. जिसकी वजह से बदन को हीलिंग का टाइम ही नहीं मिलता और हम बीमार पड़ने लगते हैं. तकनीकी तौर पर आखरी बार खाना खाने के आठ घंटे या उसके भी कुछ देर हमारा पाचन तंत्र काम करता रहता है. 8 घंटे तक आंत के भोजन से शरीर पोषक तत्वों को अवशोषित करता है. इसके बाद हमारा शरीर लीवर में जमा ग्लूकोज और मांसपेशियों से ऊर्जा पाने लगता है. रोजा रखने के दौरान या बाद में, ग्लूकोज के भंडार ख़त्म होने के बाद, शरीर के लिए ऊर्जा का अगला स्रोत वसा बन जाता है.
जब शरीर से वसा कम होना शुरू होता है, तो इससे वज़न घटता है, कोलेस्ट्रोल की मात्रा घटती है. जैसे ही हमारे जिस्म को रोजा रखने की आदत होने लगती है हमारे अंदर जमी चर्बी यानि कि वसा टूटने लगता हैं और यह ब्लड शुगर में बदल जाते हैं. शरीर उपवास प्रक्रिया के अनुरूप ढल जाता है. इस दौरान आपके मलाशय, लीवर, किडनी और त्वचा डीटॉक्सिफिकेशन के दौर से गुजरते हैं.

रोजा में पानी नहीं पीने से किस तरह होता है फायदा

रोजा में जिस तरह से पानी पीने की इजाज्त नहीं है उसे आज के मॉडर्न युग में ड्राई फास्टिंग कहते हैं जिसका पश्चिमी देशों में काफी चलन बढ़ गया है. ठीक इसी तरह से हिन्दू धर्म में इसे निर्जला उपवास कहते हैं. इन सभी में भी पानी नहीं पिया जाता है. और इसके पीछे का साइंस काफी चमत्कारी है.

जब हमारे शरीर के अंदर पानी नहीं जाता है तब हमारे जिस्म के अंदर की कोशिकाएं यानि सेल्स(Cell) अंदर से टॉक्सिन्स को बर्न करते हैं। इसी के साथ शरीर के भीतर मौजूद डेड सेल्स भी बर्न हो जाती हैं और उनकी जगह खाली हो जाती है। इससे होता यह है कि आपका शरीर ज्यादा स्टेम सेल्स बनाने लगता है। ये स्टेम सेल्स ही आगे चलकर आपके शरीर में नए सेल्स का निर्माण करती हैं। जो जिस्म के अंदर खराब सेल्स की जगह नए सेल्स बनकर उसे ठीक करती है. शरीर में जितने ज्यादा नए सेल्स बनेंगे आप उतने समय तक जवान और खूबसूरत बने रहेंगे। पानी पीने से किडनी, लिवर और आंतों में जमा गंदगी पानी के साथ निकल जाती है। लेकिन फिर भी बहुत सारी गंदगियां सेल्स के अंदर रह जाती है। जो पानी नहीं पीने से शरीर के भीतर की गंदगी को बर्न करने लगते हैं। इससे बॉडी की ज्यादा बेहतर सफाई होती है।

साइंस की नई दुनिया में ड्राई फास्टिंग से कैंसर और ट्यूमर जैसी बीमारियों से लड़ने में मदद मिलती है। इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि जब आपका शरीर पूरी तरह खाली रहता है आप उपवास रखते हैं और पानी भी नहीं पीते हैं, तो आपका शरीर सबसे पहले बीमार सेल्स को बर्न करके एनर्जी बनाता है, ताकि स्वस्थ सेल्स को नुकसान न पहुंचे। ऐसे में अगर किसी व्यक्ति के शरीर में ट्यूमर है या सेल्स से जुड़ी कोई दूसरी बीमारी है, तो शरीर उस हिस्से के सेल्स को तेजी से बर्न करता है और बीमारी धीरे-धीरे खत्म होने लगती है। इस तरह से शरीर की इम्यूनिटी बढ़ती है और कई रोगों का खतरा कम होता है। ड्राई फास्टिंग के द्वारा शरीर में इंफ्लेमेशन घटता है। इंफ्लेमेशन ही वह कारण है, जो कैंसर, डायबिटीज, दिल की बीमारियों को बढ़ावा देता है। इसलिए रोजा रखने या निर्जला व्रत रखने से आप इन रोगों से बच सकते हैं।

रोजे के दौरान दिनभर भूखे प्यासे रहने से मेटाबॉलिज्म बेहतर तरीके से काम करने लगता है। इससे खाने के ज्यादा से ज्यादा न्यूट्रिएंट्स शरीर को मिलते हैं। रमजान में लंबे समय तक भूखे रहने के बाद देर शाम खाने से शरीर में Adiponectin हार्मोन बनता है, ये शरीर को ज्यादा न्यूट्रिएंट्स एब्जोर्ब करने में मदद करता है।

संस्कृत में कहा भी गया है कि ‘लंघन् म सर्वोत्तम औषधं’ यानी उपवास को सर्वश्रेष्ठ औषधि माना जाता है। उपवास में जब 12 घंटे या उससे अधिक कुछ नहीं खाते है तो किटोसिस की प्रक्रिया शुरू हो जाती है, जिसमे हमारे शरीर की कोशिकाएं शरीर में मौजूद फैट यानि चर्बी को गलाकर इसके माध्यम से ऊर्जा लेना शुरू कर देती है। इससे शरीर में होने वाली ऑटोफैजी नामक प्रक्रिया में मदद मिलती है। ऑटोफैजी कोशिकाओं में साफ सफाई के लिए होने वाली प्रक्रिया है। इस प्रकिया के द्वारा शरीर की कोशिकाओं में पैदा होने वाले अपशिष्ट पदार्थ, नुकसान करने वाले तत्व और विषैले तत्व शरीर द्वारा नष्ट कर दिए जाते हैं।