आजादी से पहले और आजादी के बाद भी देश पर हुकूमत यानी राज वाली राजनीतिक पार्टी कांग्रेस आज अपने अस्तित्व को बचाने में लगी है. कई चुनाव में पार्टी की दुर्दशा को साफ तौर पर भी देखा जा सकता है की आज के समय में कांग्रेस मात्र 6 राज्यों तक सिमट कर रह गई है. एक दौर था जब कांग्रेस देश में 16 से 15 राज्यों पर राज करती थी आज कांग्रेस अपना अस्तित्व बचाने में लगी है.
आखिर कहा दिख रही खामियां
लंबे वक्त से कांग्रेस कहीं न कहीं नीति, नेतृत्व और रणनीति को लेकर भ्रम का शिकार रही है. आज कांग्रेस अपनी विचारधारा को स्पष्ट नहीं कर पा रही है. साथ ही पार्टी को एक साथ लेकर चलने वाला नेता यानी मुखिया को भी लेकर आए पार्टी में दरार पड़ती नज़र आती है. कांग्रेस की दशा ये आज से नहीं बल्कि काफी पुरानी बात है. 2014 के बाद से कांग्रेस के जो चुनावी परिणाम आए वो साबित करते हैं कि पार्टी में एकता, अखंडता, लीडरशिप क्वालिटी खत्म सी हो गई है.
गठबंधन का बन गई सहारा
बंगाल में वामपंथियों के साथ, तमिलनाडु में गठबंधन की लड़ाई, बिहार में साझेदारी वाला विपक्ष गवाह है कि आज कांग्रेस अकेले देश में काबिज होने पर सक्षम नहीं है. गठबंधन के बावजूद भी एक समस्या और भी है वो है वर्चस्व की लड़ाई. राजस्थान में बनी कांग्रेस सरकार में स्वाभिमान की लड़ाई नज़र आई, गहलोत और पायलट का किस्सा तो अपने सुना ही होगा वहीं अब पंजाब में भी ये कहानी रिपीट होती दिख रही है. अमरिंदर सिंह की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार में सीएम पर ही पार्टी के नेता सवाल उठा रहे हैं. मध्य प्रदेश की सियासी उठापटक ने तो कांग्रेस को तोड़ सा दिया है.
आज का हाल
वर्तमान समय में कांगेस का भविष्य भी साफ नज़र नहीं आ रहा है. पार्टी में युवा चेहरों की कमी से लेकर पुराने नेताओं में स्वाभिमान की लड़ाई से उम्मीद की किरण नजर नहीं आ रही है. इस समस्या पर विरासत में मिली कांग्रेस की कमान संभालने वाले मुखिया जैसे सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी भी मौन साधे बैठे हैं. साथ ही इस समस्या को खत्म करने और इतनी दूर तक कोई सोचने वाला है ही नहीं, जो हैं वे हाशिए पर या बाहर हैं.