बीते वर्ष संपन्न हुए बिहार विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने पांच सीटों पर सफलता पाई. ओवैसी की इस जीत के बाद तमाम राजनीतिक पार्टियों में कई सारे सवाल उठने लगे. इससे पहले ओवैसी की पार्टी को सिर्फ हैदराबाद की पार्टी कहा जाता था, जो बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद बदल गया. बिहार में सीमांचल के जिस इलाके में AIMIM ने पांच सीटों पर जीत दर्ज की है वहां पर क्या वजह रही जो बिहार के बाहर की पार्टी को सफलता मिली.
दरअसल ओवैसी ने बिहार में बहुत पहले से पीच तैयार कर लिया था. जब किशनगंज विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में AIMIM ने सफलता पाई थी तभी उन्होंने वहां की राजनीति को भांप लिया था. सीमांचल के जिन सीटों पर AIMIM को विजय हासिल हुई है वो क्षेत्र मुस्लिम बहुल है. यहां ओवैसी के खाते में पांच सीट जाने का साफतौर पर पहला मतलब है वहां किसी बड़े मुस्लिम नेता का नहीं होना, जिस पर जनता विश्वास दिखा सके. अगर वहां पर कोई क्षेत्रिय नेता होते जो मुस्लिम हितैषी बात करते तो शायद आज ओवैसी वहां पर परचम नहीं लहराते.
बिहार में ओवैसी की पार्टी का आगमन होने का कई सारे तथ्य हमारे सामने प्रत्यक्ष तौर पर मौजूद है. असदुद्दीन ओवैसी हमेशा से मुस्लिमों के अधिकार के बारे में बोलते आए हैं. वे सरकार के हर उस फैसले का विरोध किए हैं जिस फैसले से मुसलमानों पर तनिक भी आंच आए. यह कहना बिल्कुल वाजिब होगा कि असदुद्दीन ओवैसी पूरे भारत में मुस्लिमों का एकमात्र नेता के तौर पर उभरे हैं. जिस तरह भाजपा एक समुदाय विशेष के हित में विख्यात है, ठीक उसी तर्ज पर ओवैसी अपनी पार्टी को स्थापित करने में लगा है. उन्होंने मुसलमानों में ये विश्वास पैदा कर दिया है कि सिर्फ वही एकमात्र ऐसे नेता है जो मुस्लिमों के लिए लड़ाई लड़ रहा है. और कहीं न कहीं यही एक कारण है जो सीमांचल के लोगों को भा गया. सीमांचल के लोग ओवैसी की विचारधारा से प्रभावित हो गए. उन्हें ऐसा लगा कि मुस्लिमों के लिए स्वतंत्र रुप से आवाज उठाने वाला एकमात्र नेता ओवैसी ही है. और जिस वजह से सीमांचल के मतदाता ने ओवैसी पर भरोसा जताया है.
बिहार में ओवैसी का आगमन कहीं न कहीं राजद और कांग्रेस के लिए चिंता का विषय है. क्योंकि राजद का मुस्लिम-यादव फार्मुला में AIMIM ने सेंधमारी की है. कांग्रेस जो खुद को सभी धर्मों की पार्टी बताती है, वो भी AIMIM के आगें शिकस्त हो गई. एक समय ऐसा था जब मुसलमानों ने नीतिश कुमार की पार्टी जदयू पर भरोसा जताई परंतु जदयू जब भाजपा में शामिल हो गई तो मुस्लिमों ने जदयू को भी नकार दिया. हम इस बात से भी मुकर नहीं सकते हैं कि भाजपा की मंशा हिंदू राष्ट्र की ओर है. जिस वजह से मुसलमानों का सीधा सा अवधारणा है कि हर हाल में भाजपा की हार हो, चाहे किसी भी अन्य पार्टी की जीत क्यों न हो जाए. और ऐसे अवसर पर असदुद्दीन ओवैसी बेहतरीन ढंग से खुद को स्थापित कर लिया है. यही वजह है कि AIMIM सीमांचल में पांच सीटों पर जीत दर्ज की है.