काबुल पर तालिबान का कब्ज़ा होने के बाद से ही दुनिया अफ़ग़ानिस्तान को लेकर दो हिस्सों में बंटी हुई दिख रही है । काबुल पर तालिबान की जीत की कोई देश बुराई करता रहा तो इसे बड़ी जीत बताता रहा । और दुनिया का ये बंटवारा अब तालिबान की मान्यता को लेकर भी जारी है ।
दरअसल तालिबान ने काबुल पर कब्ज़ा करके दुनिया को अपनी जीत के बारे में तो बता दिया । लेकिन कूटनीति के मैदान में तालिबान अपनी जीत अब तक साबित नहीं कर सका है । तालिबान की इस नई सरकार को किसी भी देश का समर्थन नहीं मिला है । और यही बात तालिबान के लिए फिलहाल परेशानी बनी हुई है । रविवार को क़तर के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री मोहम्मद बिन अब्दुलरहमान अल थानी ने अफ़ग़ानिस्तान का दौरा किया । जहां दोनों ने अफ़ग़ानी नेताओं और तालिबान सरकार से मुलाकात की । साथ ही दोनों नेता अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई और अफगानिस्तान की शांति प्रक्रिया के प्रमुख अब्दुल्ला अब्दुल्ला से भी मिले ।
कतर के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री के साथ बैठक में तालिबान ने क़तर और कतर के लोगों का शुक्रिया । हम वादा करते हैं कि तालिबान ऐतिहासिक दोहा शांति समझौते का पालन करेगा
इससे पहले भी तालिबान के नेता UN के मानवाधिकार से जुड़े मामलों के अंडर सेक्रेटरी समेत अपने सबसे बड़े हमदर्द चीन और पाकिस्तान से भी मुलाकात कर चुका है । मगर तालिबान की इस सरकार को इन दो देशों की तरफ़ से भी सीधे तौर पर अब तक मान्यता नहीं मिल सकी है । अब आप ये समझिए कि तालिबान को मान्यता मिलने से उसकी कितनी बड़ी मुश्किल हल हो सकती है । दरअसल तालिबान को देश की अर्थव्यवस्था चलाने के लिए फंड की ज़रूरत है । अफ़ग़ानिस्तान का करीब 9 बिलियन डॉलर का फंड अमेरिका के पास है और आईएमएफ ने भी 440 मिलियन डॉलर फ्रीज कर दिया है । ऐसे में तालिबान इन पैसों को जल्द से जल्द अपने देश लाना चाहता है ताकि उसका इस्तेमाल कर सके । और इसके लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी है अतंरराष्ट्रीय मंच पर उसे मान्यता मिलना. लेकिन कई देशों उसके रिश्ते ठीक ना होना उसके रास्ते की रुकावट बना हुआ है । ‘फ्रांस उस सरकार को मान्यता देने या उसके साथ किसी भी तरह के संबंध रखने से इनकार करता है. हम देखना चाहते हैं कि तालिबान अपनी तरफ से क्या करता है और उन्हें आर्थिक मामले में क्या करना है, ये फैसले लेने की जरूरत होगी. साथ ही अंतरराष्ट्रीय संबंधों की भी आवश्यकता होगी. अब यह उनके ऊपर है.’ यानी अब तालिबान सरकार को लेकर भी दुनिया की अलग अलग राय है । कोई इस सरकार के साथ है तो कोई इससे पूरे तरह दूरी बना कर रखना चाहता है । अब देखना ये होगा कि आख़िर तालिबान सरकार कूटनीति के मैदान में कितने दोस्त बना पाता है ।