योग की उत्पत्ति आज की बात नहीं है । हज़ारों वर्षों से योग भारत की संस्कृति में बसा हुआ है । ऐसा मान्यता है कि मानव सभ्यता की शुरुआत से ही योग किया जा रहा है ताकि वो मन, दिमाग और शरीर को स्वस्थ रख सकें । भगवान शिव को पहले योगी या आदि योगी तथा पहले गुरू या आदि गुरू के रूप में माना जाता है ।
ऋग्वेद में योग की जो व्याख्या की गई है वो बताता है कि योग एक ऐसी शक्ति है जिससे हम अपने मन, मस्तिष्क और शरीर को एक सूत्र में पिरो सकते हैं । यानी मनुष्य को अपने मन, मस्तिष्क और शरीर को शक्ति प्रदान कर सकता है । लेकिन हज़ारों वर्षों पुरानी ये संस्कृति कुछ साल पहले तक विलुप्त सी होने लगी थी । योग करने वाले और उसका महत्व समझने वाले कुछ ही लोग थे । दुनिया की शब्दावली में योग नाम का एक शब्द तो था लेकिन वो सिर्फ एक नाम ही रह गया था ।
27 सितंबर 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में इंटरनेशनल डे ऑफ योगा मनाने की एक अपील की । उन्होंने 21 जून को योग दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव रखा । केवल 90 दिनों के अंदर 193 देशों में से 177 देशों ने इसे अपना समर्थन दे दिया । 11 दिसंबर 2014 को ये फ़ैसला किया गया कि 21 जून की तारीख योग दिवस के रूप में मनाई जाएगी ।
आपको जानकर हैरानी होगी कि इससे पहले संयुक्त राष्ट्र में किसी भी प्रस्ताव को इतने कम समय में इतने ज़्यादा देशों का समर्थन नहीं मिला था । इसके बाद साल 2015 में पहली बार भारत समेत दुनिया के कई देशों में योग दिवस भव्य रूप में मनाया गया । भारत में पहले योग दिवस के दिन तो राजपथ पर पीएम मोदी की अगुवाई में 35 हजार लोगों की उपस्थिति में योग दिवस मनाया गया था । लेकिन 21 जून का दिन ही इसके लिए क्यों तय किया गया इसके पीछे भी कुछ महत्वपूर्ण कारण हैं । 21 जून का दिन पूरे साल का सबसे लंबा दिन होता है यानी सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक का समय सबसे ज्यादा होता है । इस दिन ही सूर्य अपनी स्थिति दक्षिणायन में लाता है, जो कि योग और अध्यात्म के लिए सबसे उपयोगी मानी जाती है । इस में कोई दो राय नहीं है कि योग के लिए 21 जून को ही क्यों चुना गया । साल दर साल योग दिवस के लिए नई थीम भी तैयारी की जाने लगी थी ।